शनिवार, 20 मई 2023

Vatsavitri.vratkatha वत्सव्रत कथा (वत्सव्रती व्रत कथा) .bhakti



 Vatsavitri.vratkatha



वत्सव्रत कथा (वत्सव्रती व्रत कथा) 


एक समय की बात है, एक गांव में एक ब्राह्मण ब्राह्मणी अपने पुत्र के साथ रहते थे। उनका पुत्र बहुत ही बुद्धिमान और समझदार था। एक दिन उसने अपने माता-पिता से पूछा, "माता-पिता, मुझे एक ऐसा व्रत बताइए जो मुझे सर्वश्रेष्ठ पुत्र बनाए।"


ब्राह्मण ब्राह्मणी ने उसे बताया, "पुत्र, वत्सव्रत एक बहुत ही महत्वपूर्ण और पवित्र व्रत है। इस व्रत के दौरान, तू एक दिन माता संग रहेगा और बहुत सारी तपस्याएं करेगा। यह व्रत श्रद्धा और प्रेम की प्रतीक है।"


वत्सव्रत का दिन आता और पुत्र अपनी माता के साथ व्रत करने के लिए जंगल में चला गया। वहां पहुंचकर वह एक विपश्यना बालिका (विदुषी) से मिला। बालिका ने पुत्र को देखकर कहा, "ब्राह्मण ब्राह्मणी का पुत्र, तुम यहां क्यों आये हो?"


पुत्र ने उसे सत्य बताया और उसे वत्सव्रत के बारे में बताया। विपश्यना बालिका ने भी वत्सव्रत करने की इच्छा जताई। उस

परिवार ने उसे व्रत में शामिल करने का निर्णय लिया और सब मिलकर व्रत करने लगे। दिनभर व्रत के नियमों का पालन करते हुए वे तपस्याएं करने लगे। वे देवी वत्सवती की पूजा करते हुए मन्त्रों का जाप करने में व्यस्त थे।


आधी रात को ब्राह्मण के पुत्र को विषाद छाया। उसने वत्सव्रत में इतनी उत्सुकता और ध्यान से नियमों का पालन किया था कि उसकी दिनचर्या ने उसे थका दिया था। वह सोचने लगा, "मुझे अभी और तपस्या करनी चाहिए या अपनी माता के साथ लौट जाना चाहिए?"


तभी देवी वत्सवती दिखाई दीं और उससे प्रसन्न होकर बोलीं, "हे ब्राह्मण के पुत्र, तू बहुत विशेष है। तेरी उत्सुकता, श्रद्धा और समर्पण को देखकर मैं तुझे एक वरदान देने आई हूँ।"


पुत्र ने हंसते हुए पूछा, "देवी, मुझे क्या वरदान मिलेगा?"


देवी वत्सवती ने कहा, "तू अनन्य भक्ति और प्रेम के साथ माता-पिता की सेवा करेगा, और मेरा व्रत पूर्ण करेगा। मैं तुझे स्वयंभू श्री कृष्ण के स

ादर्श रूप से दर्शन कराऊँगी और तुझे संतान सुख दूंगी।"


पुत्र ने देवी वत्सवती का आशीर्वाद प्राप्त करते ही आनंद से भरा हृदय सहित माता के पास लौट आया। वह अपने माता-पिता की सेवा में और प्रेम से लीन हो गया। उसने उन्हें सम्मान दिया और उनकी सभी आदेशों को मानने का वादा किया।


दिन-रात उसने अपने माता-पिता की सेवा की, उनके लिए खाना पकाया, उनकी आवश्यकताओं को पूरा किया और उन्हें ध्यान से पाला। उसके प्रेम और सेवा से उनका आत्मा बहुत आनंदित हुआ।


समय के साथ, पुत्र के जीवन में सुख और समृद्धि बढ़ने लगी। उसे आत्मविश्वास और सभ्यता की प्राप्ति हुई। वह एक प्रमुख बन गया और अपने लोगों की सेवा करने लगा। वह संतान सुख की प्राप्ति की और अपने बच्चों को धार्मिक शिक्षा देकर उन्हें सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।


वत्सव्रती व्रत की कथा सभी लोगों तक पहुंची और उन्हें संतान सुख और प्रेम के माध्यम से परिवार का महत्व समझाया।

Saransh

वत्सव्रती व्रत की कथा से हमें यह संदेश मिलता है कि माता-पिता की सेवा करना और उनके प्रेम को महत्व देना हमारे जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इसके द्वारा हम संतान सुख, समृद्धि और आत्मविश्वास प्राप्त कर सकते हैं। इस व्रत के माध्यम से हम धार्मिकता और नैतिकता को अपने जीवन में स्थापित कर सकते हैं और अच्छी संतान को प्राप्त कर सकते हैं। व्रत का महत्व हमें प्रेम, समर्पण और उत्साह की महत्ता को समझाता है। हमें अपने माता-पिता के प्रति सम्मान और आदर्श बालक बनने की ज़रूरत होती है, जिससे हमारा संघटित और समृद्ध परिवार बनता है। यह व्रत हमें धार्मिक आदर्शों और परंपराओं के प्रति समर्पित रहने का आह्वान करता है।

Kab.aur.kese.manate

वत्सव्रत व्रत का आयोजन शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को किया जाता है, जो हिन्दू कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ मास के महीने में पड़ती है। यह व्रत सावन मास के पहले दिन से पूरे व्रत की अवधि तक चलता है। यह प्रायः ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया या ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया के दूसरे दिन आयोजित किया जाता है।


व्रत के दौरान, व्रत करने वाले व्यक्ति को संध्या काल में स्नान करना चाहिए और पवित्र स्थान पर जाकर माता-पिता और देवी वत्सवती की पूजा करनी चाहिए। उन्हें अपने माता-पिता के साथ भोजन करना चाहिए और धार्मिक ग्रंथों के पाठ करने चाहिए। यह व्रत पूरी भक्ति और श्रद्धा के साथ माना जाता है।


व्रत की कथा सुनने के बाद, लोग व्रत के नियमों का पालन करते हैं, अपने माता-पिता की सेवा करते हैं और परिवार के सदस्यों के साथ व्रत के दौरान विशेष भोजन करते हैं। यह दिन परिवार के संगीत, नृत्य और आपसी मिलन-जुलन का भी अवसर होता है।


व्रत के दौरान, लोग म

मंदिरों में जाकर माता वत्सवती की पूजा और आरती करते हैं। उन्हें माता के सामर्थ्य, कृपा और आशीर्वाद का विशेष महसूस होता है। व्रत के दौरान लोग अपने मन में देवी की कृपा का आभास करते हैं और उनसे अपने जीवन की समस्याओं का समाधान मांगते हैं।


व्रत के अंतिम दिन, लोग व्रत का पूजन समाप्त करते हैं और व्रत के नियमों के अनुसार भोजन करते हैं। उन्हें माता वत्सवती के आशीर्वाद का अनुभव होता है और उनकी भक्ति और प्रेम से भरी जीवन में सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है।


वत्सव्रती व्रत भक्ति, समर्पण और परिवार के महत्व को सामर्थ्यपूर्वक प्रकट करने का एक अद्वितीय उत्सव है। इस व्रत के माध्यम से हम अपने परिवार के साथ अच्छे संबंध और प्रेम का महत्व समझते हैं और अपने माता-पिता की सेवा करने का आदर्श बनाते हैं।


यह व्रत हमें धार्मिकता, नैतिकता और सामाजिक मूल्यों को अपने जीवन में स्थापित करने की प्रेरणा देता है। इसके माध्यम से हम अ

पने माता-पिता के प्रति सम्मान और प्यार का विकास करते हैं और परिवार के सदस्यों के साथ समृद्ध और खुशहाल जीवन बिता सकते हैं। इस व्रत के माध्यम से हम अपने अंतरंग मन की शुद्धता और आत्मिक विकास को बढ़ा सकते हैं।


वत्सव्रती व्रत को मनाने के लिए आपको इसे सम्पूर्ण निष्ठा और श्रद्धा के साथ करना चाहिए। आप व्रत की तिथि और समय के बारे में अपने पंडित या धार्मिक गुरु से परामर्श ले सकते हैं। इसके अलावा, आप व्रत की कथा और महत्व को समझने के लिए आपके पास वेबसाइटों, पुस्तकों या धार्मिक स्रोतों से सहायता ले सकते हैं।


व्रत के दौरान, आप अपने माता-पिता की सेवा, उनकी सत्कार करना, उनके प्रति आदर और प्रेम व्यक्त करना चाहिए। आप व्रत के नियमों का पालन करें, जैसे कि व्रत के दौरान विशेष आहार का सेवन करना या उनके साथ संगीत, कथा और धार्मिक कार्यक्रमों में भाग लेना। आप व्रत के अंतिम दिन पूजा करें और माता वत्सवती का आशीर्वाद प्राप्त करें।


वत्सव्रती


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